गुरुवार, 27 अक्तूबर 2011

मन्नू भाई बोले तो… मूर्ख लाल मलाई काटे

मेरे इलाके में रहने वाले मिथ्यानंदजी दो कौड़ी के जमीनी नेता हैं। जमीनी नेता इसलिए कि इन्होंने अपने पोस्टर हर खंभे पर नीचे तक लगवा रखे हैं। जिससे ढाई माह का पिल्ला भी मामूली प्रयास से रोज इनका मुंह धुलवा देता है। ये जनाब मैडम के प्रति खास आस्था रखते हैं। मैडम का स्वास्थ्य थोड़ा सुधरा तो मिथ्यानंदजी कॉलोनी में मिठाई बांट रहे थे। मेरे घर पर आए तो मैंने मन्नू भाई... के कारनामों की बात छेड़ दी।
...ये लो मैं तो पहले ही कह रहा था कि मैडम में पूर्ण आस्था रखने वाले मिथ्यानंदजी मुझसे ये बेहुदा सवाल करेंगे कि मन्नू भाई कौन? इसके जवाब में मैंने उनके सामने ही यह बात कही कि ऐसा पूछने वाले की संसार में कोई जगह नहीं है और ऐसे धरती के बोझ को बंगाल की खाड़ी में जाकर समाधि ले लेनी चाहिए या फिर किसी गंदे नाले को और गंदा करते हुए डूब मरना चाहिए। नाले का नाम सुनकर पहले तो मिथ्यानंदजी खुश हुए, लेकिन डूब मरने के लिए नहाने जैसी प्रक्रिया से गुजरना उन्हें कतई मंजूर नहीं है, इसलिए उदास भी हो गए।
बहरहाल, उनकी परेशानी को दूर करते हुए मैंने कहा, मन्नू भाई यानी ‘मूर्ख लाल मलाई काटे’। मिथ्यानंद के हठ को दूर करने के लिए मैंने ‘मूर्ख लाल मलाई काटे’ के प्रवक्ता की तरह उनकी शान में कसीदे भी पढ़ दिए कि ‘वो’ देश के सबसे ऊंचे पद पर हैं। उनकी सबसे बड़ी काबिलियत यही है कि वे मैडम की पसंद हैं। तब तक, जब तक कि मैडम को कोई दूसरा कर्मचारी नहीं मिल जाता।’ मेरे इस जवाब पर मिथ्यानंदजी हत्थे से ही उखड़ गए। बोले, ‘ये क्या मजाक है।’ मैंने कहा, ‘हां भाई ये बिल्कुल सच है।’ लेकिन मिथ्या का लबादा ओढ़े मिथ्यानंदजी को यकीन ही नहीं आ रहा है कि 'मूर्ख लाल मलाई काटे' अपने देश के सबसे ऊंचे पद पर हैं। वो तो समझ रहे थे कि मैडम से ऊपर कोई नहीं है।
 मैंने कहा, ‘मिथ्यानंदजी यह सच है और आपकी तरह लोगों के लिए रहस्य भी कि मन्नू भाई सबसे ऊंचे पद पर कैसे पहुंच गए। यह इस सदी का सबसे बड़ा और गहरा रहस्य है और यह रहस्य केवल मैडम ही जानती हैं।’
ये मैडम की ही मेहरबानी है कि हमारे 'मूर्ख लाल मलाई काटे' राजनीति की पिच पर ऐसे बैट्समैन की तरह डटे हुए हैं, जो हर बॉल पर आउट हो जाता है, लेकिन अंपायर आउट ही नहीं देता। ... क्योंकि अंपायर मैडम हैं ना। आलम यह है कि 'मूर्ख लाल मलाई काटे' खेलने तो वन-डे आए, लेकिन अब इस देश की राजनीतिक पिच पर पिछले सात सालों से बल्ला भांज रहे हैं। 
'मूर्ख लाल मलाई काटे' की कूबत का लोहा पूरी दुनिया मानती है, लेकिन विरोधी पुल्लू लाल उन्हें सबसे कमजोर मानते हैं, क्योंकि वे अपने डिसीजन खुद नहीं लेते, बल्कि मैडम लेती हैं। हां एक बात और कि हमारे 'मूर्ख लाल मलाई काटे' लड़ने-झगड़ने में बिलकुल यकीन नहीं रखते, इसीलिए चुनाव तक नहीं लड़ते। बिना चुनाव लड़े ही वे सबसे ऊंचे पद पर पहुंच गए और जो चुनाव लड़कर आए वे बेचारे उनके अंडर काम कर रहे हैं।
मिथ्यानंदजी को फिर भी यकीन नहीं आया, तो मैंने तुरंत अपने बेटे को बुलाया, जो अक्सर 'सिंह इज किंग' फिल्म का गाना जोर-जोर से गाता है। अपने बेटे से मिथ्यानंद जी के सामने ही पूछ लिया, ‘बेटा ये बताओ, 'सिंह इज किंग' का मतलब जानते हो।’ उसने मुझे इस तरह घूरा जैसे कि मैं उसका उल्लू और वो मेरा पट्ठा हो।’ उसने थोड़ी देर सोचा फिर बोला, ‘सिंह इज किंग वही तो हैं, जो मैडम के यहां काम करते हैं। अब तो उन्हें वहां काम करते हुए सात साल पूरे हो चुके हैं।’ मिथ्यानंदजी यह सुनकर काफी देर तक हें...हें...हें... करते रहे। मिथ्यानंदजी की हें... हें... हें... कब ढेंचूं... ढेंचूं... में तब्दील हो गई, पता ही नहीं चला। ‘नमस्ते’ कहकर चले गए।
खैऱ, अब मैं आपसे मुखातिब होता हूं। मैं तो एक ही बात समझा कि हर काबिल आदमी नाकाबिलों की फौज में से एक को सरदार (हेड) चुनता है, जिसके पास ‘हेड’ तो हो लेकिन हेड में कुछ नहीं हो। उसे आप सिंह इज किंग कहें या फिर मूर्ख लाल मलाई काटे... क्या फर्क पड़ता है। अरे खतम हो गया मामू...।
                                          
                                                                                                       
जेपी यादव

2 टिप्‍पणियां:

  1. .....मैं तो एक ही बात समझा कि हर काबिल आदमी नाकाबिलों की फौज में से एक को सरदार (हेड) चुनता है, जिसके पास ‘हेड’ तो हो लेकिन हेड में कुछ नहीं हो।.... what a punch line

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  2. शानदार,,,,मूर्ख लाल मलाई काटे

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